मनुष्य के जीवन में चाहे आन्तरिक शत्रु जैसे काम, क्रोध, लोभ,मोह, अहंकार आदि हों या बाहर के शत्रु हों तो जीवन की गति थम सी जाती है लोग आपके पास दौड़ कर आंवे आपसे मिलने के लिए, बातचीत करने के लिए ललायित हों ।। ॐ स्धशीचछन्नसिर: कृपणंभयं हस्तेवरम बिभ्रती धोरास्याम https://www.youtube.com/watch?v=qGCHTa9HGyw 
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